प्रवीण चोपड़ा
लखनऊ
26.3.2020
विविध भारती से जुड़े तो 1978 से ही हैं - चलिए, विविध भारती की बात तो बाद में करते हैं ...अमृतसर में जन्मे-पले हम लोगों का रेडियो से नाता उन दिनों से हैं जब घर के सारे सामान से नाज़ुक चीज़ एक बाबा आदम के ज़माने का स्टूल पर रखा हुआ मर्फी रेडियो होता था ...जिस की लाइसेंस फीस तीन चार रूपये हर साल डाकखाने में जमा करवानी होती थी ...ऐंटीना की तार ऊपर छत पर किसी ईंट के नीचे दबा कर आते थे ...और कभी कभी उसे हिलाने-ढुलाने भी जाना होता था ... और रेडियो पर किसी प्रोग्राम की अगर याद है तो शायद 1970 के आसपास की होंगी (तब मेरी उम्र सात आठ साल रही होगी) - जनाब अमीन सयानी की बिनाका गीत माला साल के आखिरी दिनों में आता था... बस, घर में सभी को उस प्रोग्राम की इंतज़ार होती थी ..
फिर दो चार साल बाद एक बुश का ट्रांजिस्टर आ गया ... फिर आल इंडिया की रेडियो सर्विस के प्रोग्राम सुनने लगें ... रविवार सुबह बच्चों का प्रोग्राम जो इकबाल भाई जान पेश किया करते थे (नाम में गड़बड़ तो नहीं कर गया मैं) ...और सब से ज़्यादा हमें अच्छा लगता था फ़िल्मी गीतों का फरमाईशी प्रोग्राम - स्कूल के चक्कर में सुबह तो कभी कभी ही सुन पाते थे लेकिन बाद दोपहर वाले फरमाईशी प्रोग्राम तक तो घर वापिस पहुंच ही जाया करते थे।
ऐसे ही 1978-79 के दिन याद आ रहे हैं...कालेज में प्री-यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था ...रात में पढ़ते वक्त रेडियो पर कुछ सुनने को मन करता तो कुछ सुन ही न पाता -- लेकिन उस के बटन से पंगे लेते लेते अचानक एक दिन विविध भारती लग गया ...लग क्या गया, दो एक मिनट के लिए गीत सुन पाया -- फिर सिग्नल गायब ... बड़ा अफसोस हुआ... मुझे वह फिल्मी गीत भी हमेशा के लिए याद रह गया...सुनयना फिल्म की गीत - सुनयना, सुनयना, आज इन नज़ारों को तुम देखो..
फिर कुछ दिन तक रात के समय उस ट्रांजिस्टर से पंगे लेना चालू रहा .. और फिर हवा महल वाली झलकी कभी कभी आधी अधूरी सुन जाती ...ऐसे ही कुछ दिन चला .. विविध भारती सुनना सिरदर्दी सा लगा ...कुछ ही दिनों बाद वह सिरदर्दी भी दूर हो गई ..टीवी आ गया ...
दोस्तो, हुआ ऐसा कि 1988 के बाद 2-3 साल दिल्ली और दिल्ली से आस पास रहने का मौका मिला ...सब से बढ़िया बात वहां रहने की यह लगने लगी कि वहां विविध भारती सुन पाते थे ... बहुत ही अच्छा लगने लगा और जितने भी फिल्मी प्रोग्राम थे विविध भारती के ..सुनने में आनंद आ जाता ..
1991 में बंबई शिफ्ट हो गये तो वहां भी विविध भारती से नाता जुड़ा रहा .. उसी दौरान 1994 की बात होगी एफएम रेडियो आ गया ...हमने एक फिलिप्स का वर्ल्ड-रिसीवर ले लिया ...लेकिन सुनते विविध भारती ही थे अधिकतर ...
यह क्या कुछ ज़्यादा ही खिंच रही है यह बात ... संक्षेप में कहूं तो विविध भारती से 25-30 सालों से तो जुड़े ही हुए हैं... बहुत से एफएम चैनल आए ..लेकिन अधिकतर ऐसे हैं कि उन्हें लगाते ही चैं-चैं से मेरा सिर भारी होने लगता है ..इसलिए लगभग हमेशा विविध भारती ही सुनते हैं...अपने इस ब्लॉग पर तो शायद कभी कभी लेकिन अपने अन्य ब्लॉग्स पर विविध भारती प्रोग्राम की समीक्षा करता रहता हूं....समीक्षा तो क्या कहूं, हर पोस्ट में मुझे इन के प्रोग्रामों की तारीफ़ करने पर ही मजबूर होना पड़ता है।
आज एक ख़ास दिन यह था कि सुबह विविध भारती पर बताया गया कि दोपहर तीन बजे जो सखी सहेली प्रोग्राम आयेगा वह फेसबुक लाइव पर भी आप देख पाएंगे ...कोशिश तो करी उस वक्त लेकिन देख नहीं पाया ..क्योंकि मैं उसे विविध भारती के दूसरे पेज पर ढूंढ देख रहा था ... लेकिन पूरा प्रोग्राम अपने मोबाइल पर एप से सुना - जब से एप पर सुनते हैं तो बड़ी आसानी हो गई है - मुझे याद है पिछले साल जब मैं यूएसए एवं दुबई गया था तो वहां भी जब मौका मिलता मैं तो भई अपना विविध भारती सुनने लगता ...मुझे ऐसी लत है विविध भारती की ..
इतने साल हो गये विविध भारती को सुनते हुए लेकिन कभी भी किसी प्रोग्राम ने निराश नहीं किया ....इन की ज़िम्मेदारी देखिए...इन का कंटैंट देश में करोड़ों लोगों तक पहुंचता है ...कंटैंट की जितनी तारीफ़ की जाए कम है ... सीधी सीधी बात कहूं तो यह कि यह हम सब की बात करते हैं , हम सब की पसंद के प्रोग्राम पेश करते हैं... भई, मैं तो विविध भारती का इतना बड़ा प्रशंसक हूं कि मेरे पास अल्फ़ाज़ का ज़ख़ीरा ख़त्म हो चुका है इन सब की तारीफ़ करने के लिए....
अच्छा जाते जाते यह भी सुनिए कि विविध भारती के इस पेज पर जाकर आप पहले तो इसे पसंद करिए और फिर आप इस पर सहेजे हुए विविध भारती के विभिन्न प्रोग्राम भी वहां पर देख सकते हैं...
https://www.facebook.com/vbsborivali (आप का फेसबुक में लॉग-इन होना ज़रूरी है)
विविध भारती के बारे में जितने संस्मरण हैं वे इस तरह की चलताऊ पोस्ट में नहीं सहेजे जा सकते ...कोई दूसरा जुगाड़ सोचता हूं तब तक आप यह सुंदर गीत सुनिए .
लखनऊ
26.3.2020
विविध भारती से जुड़े तो 1978 से ही हैं - चलिए, विविध भारती की बात तो बाद में करते हैं ...अमृतसर में जन्मे-पले हम लोगों का रेडियो से नाता उन दिनों से हैं जब घर के सारे सामान से नाज़ुक चीज़ एक बाबा आदम के ज़माने का स्टूल पर रखा हुआ मर्फी रेडियो होता था ...जिस की लाइसेंस फीस तीन चार रूपये हर साल डाकखाने में जमा करवानी होती थी ...ऐंटीना की तार ऊपर छत पर किसी ईंट के नीचे दबा कर आते थे ...और कभी कभी उसे हिलाने-ढुलाने भी जाना होता था ... और रेडियो पर किसी प्रोग्राम की अगर याद है तो शायद 1970 के आसपास की होंगी (तब मेरी उम्र सात आठ साल रही होगी) - जनाब अमीन सयानी की बिनाका गीत माला साल के आखिरी दिनों में आता था... बस, घर में सभी को उस प्रोग्राम की इंतज़ार होती थी ..
फिर दो चार साल बाद एक बुश का ट्रांजिस्टर आ गया ... फिर आल इंडिया की रेडियो सर्विस के प्रोग्राम सुनने लगें ... रविवार सुबह बच्चों का प्रोग्राम जो इकबाल भाई जान पेश किया करते थे (नाम में गड़बड़ तो नहीं कर गया मैं) ...और सब से ज़्यादा हमें अच्छा लगता था फ़िल्मी गीतों का फरमाईशी प्रोग्राम - स्कूल के चक्कर में सुबह तो कभी कभी ही सुन पाते थे लेकिन बाद दोपहर वाले फरमाईशी प्रोग्राम तक तो घर वापिस पहुंच ही जाया करते थे।
ऐसे ही 1978-79 के दिन याद आ रहे हैं...कालेज में प्री-यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था ...रात में पढ़ते वक्त रेडियो पर कुछ सुनने को मन करता तो कुछ सुन ही न पाता -- लेकिन उस के बटन से पंगे लेते लेते अचानक एक दिन विविध भारती लग गया ...लग क्या गया, दो एक मिनट के लिए गीत सुन पाया -- फिर सिग्नल गायब ... बड़ा अफसोस हुआ... मुझे वह फिल्मी गीत भी हमेशा के लिए याद रह गया...सुनयना फिल्म की गीत - सुनयना, सुनयना, आज इन नज़ारों को तुम देखो..
फिर कुछ दिन तक रात के समय उस ट्रांजिस्टर से पंगे लेना चालू रहा .. और फिर हवा महल वाली झलकी कभी कभी आधी अधूरी सुन जाती ...ऐसे ही कुछ दिन चला .. विविध भारती सुनना सिरदर्दी सा लगा ...कुछ ही दिनों बाद वह सिरदर्दी भी दूर हो गई ..टीवी आ गया ...
दोस्तो, हुआ ऐसा कि 1988 के बाद 2-3 साल दिल्ली और दिल्ली से आस पास रहने का मौका मिला ...सब से बढ़िया बात वहां रहने की यह लगने लगी कि वहां विविध भारती सुन पाते थे ... बहुत ही अच्छा लगने लगा और जितने भी फिल्मी प्रोग्राम थे विविध भारती के ..सुनने में आनंद आ जाता ..
1991 में बंबई शिफ्ट हो गये तो वहां भी विविध भारती से नाता जुड़ा रहा .. उसी दौरान 1994 की बात होगी एफएम रेडियो आ गया ...हमने एक फिलिप्स का वर्ल्ड-रिसीवर ले लिया ...लेकिन सुनते विविध भारती ही थे अधिकतर ...
यह क्या कुछ ज़्यादा ही खिंच रही है यह बात ... संक्षेप में कहूं तो विविध भारती से 25-30 सालों से तो जुड़े ही हुए हैं... बहुत से एफएम चैनल आए ..लेकिन अधिकतर ऐसे हैं कि उन्हें लगाते ही चैं-चैं से मेरा सिर भारी होने लगता है ..इसलिए लगभग हमेशा विविध भारती ही सुनते हैं...अपने इस ब्लॉग पर तो शायद कभी कभी लेकिन अपने अन्य ब्लॉग्स पर विविध भारती प्रोग्राम की समीक्षा करता रहता हूं....समीक्षा तो क्या कहूं, हर पोस्ट में मुझे इन के प्रोग्रामों की तारीफ़ करने पर ही मजबूर होना पड़ता है।
आज एक ख़ास दिन यह था कि सुबह विविध भारती पर बताया गया कि दोपहर तीन बजे जो सखी सहेली प्रोग्राम आयेगा वह फेसबुक लाइव पर भी आप देख पाएंगे ...कोशिश तो करी उस वक्त लेकिन देख नहीं पाया ..क्योंकि मैं उसे विविध भारती के दूसरे पेज पर ढूंढ देख रहा था ... लेकिन पूरा प्रोग्राम अपने मोबाइल पर एप से सुना - जब से एप पर सुनते हैं तो बड़ी आसानी हो गई है - मुझे याद है पिछले साल जब मैं यूएसए एवं दुबई गया था तो वहां भी जब मौका मिलता मैं तो भई अपना विविध भारती सुनने लगता ...मुझे ऐसी लत है विविध भारती की ..
इतने साल हो गये विविध भारती को सुनते हुए लेकिन कभी भी किसी प्रोग्राम ने निराश नहीं किया ....इन की ज़िम्मेदारी देखिए...इन का कंटैंट देश में करोड़ों लोगों तक पहुंचता है ...कंटैंट की जितनी तारीफ़ की जाए कम है ... सीधी सीधी बात कहूं तो यह कि यह हम सब की बात करते हैं , हम सब की पसंद के प्रोग्राम पेश करते हैं... भई, मैं तो विविध भारती का इतना बड़ा प्रशंसक हूं कि मेरे पास अल्फ़ाज़ का ज़ख़ीरा ख़त्म हो चुका है इन सब की तारीफ़ करने के लिए....
अच्छा जाते जाते यह भी सुनिए कि विविध भारती के इस पेज पर जाकर आप पहले तो इसे पसंद करिए और फिर आप इस पर सहेजे हुए विविध भारती के विभिन्न प्रोग्राम भी वहां पर देख सकते हैं...
https://www.facebook.com/vbsborivali (आप का फेसबुक में लॉग-इन होना ज़रूरी है)
विविध भारती के बारे में जितने संस्मरण हैं वे इस तरह की चलताऊ पोस्ट में नहीं सहेजे जा सकते ...कोई दूसरा जुगाड़ सोचता हूं तब तक आप यह सुंदर गीत सुनिए .