Thursday, January 24, 2008

केवल सौ रूपये - सारे देश में कोई रोमिंग नहीं...., कोई मासिक किराया नहीं......


यह तो अच्छा है अगर कोई ऐसी सर्विस है जिस में कोई मासिक किराया नहीं, कोई रोमिंग चार्ज़ेज़ भी नहीं....और अनगिनत बातें। किसी तरह की कोई फार्मैलिटि भी नहीं है कि यह फार्म भरो, राशन कार्ड की कापी लाओ, यह लाओ , वो लाओ। तो अगर आप भी अगर ऐसा कनैक्शन लेने के इच्छुक हैं तो केवल आप को पड़ोस वाली किसी भी इलैक्ट्रोनिक शाप में जाना होगा और वहां से एक सौ बीस रूपये मे एक एफएम रेडियो का सैट लाना होगा। फिर सुनिए जितनी मरजी मज़ेदार, चटपटी बातें। क्या कहा....केवल बातें सुनना.....हां, हां, वैसे भी हम जब मोबाइल पर बात कर रहे होते हैं , बातें तो दूसरी साइड वाला ही करता है –हमारा तो रोल उस में सिर्फ हूं-हां करने तक ही सीमित होता है, दोस्तो। क्या उस से ज्यादा मौका एफ.एम वाले अपने फोन-इन प्रोग्रामों के दौरान नहीं दे देते।

आज सुबह मैं विविध भारती पर पिटारा प्रोग्राम सुन रहा था। यार, पता नहीं जिस बंदे ने भी इस का नाम पिटारा रखा है, उसे तो किसी राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा जाना चाहिए क्योंकि इस का तो नाम सुनते ही करोड़ों लोगों को अपनी नानी-दादी की पिटारियों की याद आ जाती होगी। और फिर उत्सकुता रहती है कि देखते हैं कि आज पिटारे से क्या निकलता है....जैसे नानी के पिटारे से तरह तरह से चीज़ें निकला करतीं थीं....ठीक उसी तरह निकलती है विविध भारती के पिटारे से मीठी मीठी बातें....जिन के अनुसार कहीं अगर हम ज़िंदगी को ढाल लें तो दुनिया का तो नक्शा ही बदल जाए।

आज सुबह भी जब पिटारा खुला तो मैं उस मेहमान का नाम सुनने से चूक गया...लेकिन क्या कशिश है , दोस्तो, इस प्रोग्राम में कि आदमी बस पूरे प्रोग्राम के दौरान सैट से चिपका सा रहता है। और तो और , टीवी की तरह विज्ञापनों का भी कोई झंझट नहीं।

टीवी में तो पता नहीं किसी संजीदा इंटरवियू के दौरान ब्रेक में भी आप को क्या क्या परोस दें, और आप का बेटा पोगो चैनल पर पहुंच कर वहां से वापिस आना ही न चाहे...तो आप के प्रोग्राम का तो हो गया कचरा दोस्तो। इस लिए मेरे को यकीन मानना टीवी देखना आजकल एंटरटेनमैंट कम और सिरदर्दी ज्यादा लगने लगी है।

अकसर मैं जब भी विविध भारती के प्रोग्राम सुनता हूं न तो साथ साथ यही सोच रहा होता हूं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक मज़दूर से लेकर कोई बड़े से बड़ा उद्योगपति भी वही कार्यक्रम सुन रहा है.....किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं कि कोई ज्यादा पैसे खर्च करेगा तो उसे कुछ और सुना दिया जाएगा। यह सर्विस भी कितनी अद्भुत है। सैल-फोन कंपनियों का दावा अपनी जगह है –देश को जोड़ के रखने का, लेकिन देश के बंदों को एक माला में पिरो रखने का काम क्या आकाशवाणी / विविध भारती के इलावा किसी के वश की बात है.......नहीं,ना,...मैं भी ऐसा ही सोचता हूं।

दोस्तो, आप को यूं ही पता नहीं क्यों यह बता रहा हूं कि आप की तरह ही मेरे पास भी संगीत एवं मनोरंजन के सारे आधुनिक साधन मौजूद है लेकिन उन सब में से केवल मेरे एफएम सैट ही मेरे मन में बसे हुए हैं। मेरे लिए तो मनोरंजन के मायने ही यही हैं कि मैं अपने फुर्सत के क्षणों में रेडियो के प्रोग्रामों का मज़ा लूटूं।

दोस्तो, डोंट वरी, बलोग पोस्ट ज्यादा बड़ी नहीं होने दूंगा, क्योंकि पिछला कुछ अरसा जो आप के साथ बलोगिंग पर बिताया है उस से यही सीख ली है कि पोस्ट छोटी ही होनी चाहिए। तो, मैं आज सुबह के पिटारे की बात कर रहा था...दोस्त, उस में से मेरी बेहद पसंद का राजेश खन्ना एवं मुमताज पर फिल्माया वह गीत भी निकल आया.....जै जै शिव शंकर—कांटा लगे न कंकर...जो प्याला तेरे नाम का पिया ......मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। विविध भारती वाले जो भी गीत बजाते हैं न बस वे सब अपने ही लगते हैं....कभी आप यह नोटिस करिए कि यह उन की सैलेब्रिटी की ही पसंद नहीं होती, सारे देश की जनता कि कलैक्टिव पसंद भी यही होती है।

विविध भारती के गीत तो भई हमारी ज़िंदगी में पुश बटन का काम करते हैं....अभी अभी अगर हम उन के द्वारा बजाए जा रहे किसी गीत में अपने छुटपन की गलियों में आवारागर्दी कर रहे होते हैं तो चंद मिनटों बाद ही अपने यौवनकाल की मधुर यादों में खो जाने पर मज़बूर हो जाते हैं....... आज भी कुछ ऐसा ही हुया जब पिटारा खुलने के कुछ समय बाद ही रेडियो पर यह गाना बजना शुरू हो गया.................

दिल की बातें...दिल ही जाने,

आंखें छेड़े ....सौ अफसाने.....

नाज़ुक-नाज़ुक...प्यारे प्यारे...वादे हैं ...इरादे हैं...

आ-आ मिल के दामन...दामन से बांध लें।

हां,तो दोस्तो, रूप तेरा मस्ताना फिल्म का यह गीत सुन कर मज़ा आ गया। शायद बहुत ही अरसे बाद इस गीत को सुना था।

Sunday, January 20, 2008

तो रेडिया का एक रूप यह भी है.....


यह एक रेडियो की विज्ञापन प्रसारण सेवा है। इस सेवा में आप यह ही एक्सपैक्ट करते हैं किसी गीतों भरे कार्यक्रम के दौरान किसी साड़ीयों की दुकान, किसी गहनों के शो-रूम या किसी जूतों के शो-रूम की मशहूरियां आप को सुनने को मिलेंगी......ठीक है, ठीक है, इतना तो चलता है, हमें एंटरटेन करने के साथ अगर यह सर्विस कुछ रैविन्यू भी कमा रही है तो ठीक ही है, इस में बुराई क्या है।

लेकिन, दोस्तो, कल मैं सुबह इस सेवा के अंतर्गत एक प्रोग्राम सुन रहा था....सेहत संभाल। यह कोई हकीम जी द्वारा दी गई इंटरवियू पर आधारित था। सब से पहले तो मैं यह क्लियर करना चाहता हूं कि मैं चिकित्सा की सभी पद्धतियों का एक सम्मान करता हूं। तो फिर , मेरे को उस हकीम जी की बातों से क्या आपत्ति नहीं, मुझे भला क्यों आपत्ति होने लगी, मुझे तो केवल आपत्ति यही है कि उस so-called सेहत संभाल कार्यक्रम से पहले उस हकीम जी का पूरा पता, फोन सहित बताया गया, और प्रोग्राम के बाद भी पूरा पता ,शायद फोन नंबर सहित बताया गया था। आपत्ति तो ,दोस्तो, मुझे इस में ही है----मैं भी इस तरह के इंटरवियू पर आधारित प्रोग्रामों का एवं फोन-इन कार्यक्रमों का कईं बार हिस्सा रह चुका हूं....कभी ऐसा किसी चिकित्सक का पता बताना, फोन नंबर बताना यह वाली विज्ञापनबाजी तो दोस्तो मेरे को पचानी मुश्किल हो रही है। प्रोग्राम के बाद एक मोबाइल नंबर भी बताया गया कि अगर आप को कोई तकलीफ है तो आप इस नंबर पर फोन कर लीजिए।

दोस्तो, ले दे कर एक फुटपाथ पर, किसी फ्लाई-ओवर के नीचे गीली बदबूदार मिट्टी पर सोने वाले बशिंदों के पास अपने गमों को गलत करने के लिए, सारे शरीर को मच्छरों, मक्खियों से छलनी करवाते हुए , आधा पेट खाली होते हुए अंगडाईयां ले लेकर थक चुकी, और बार-बार दूध के लिए बिलख रही अपनी लाडली को पीटने के बाद पश्चाताप की आग में जलते जलते कल के किसी सुनहरी सपनों में खोने का एक मात्र तो साधन है ...उस का एक सस्ता सा एफएम....दोस्तो, सस्ता जरूर होगा, लेकिन उस में भी आवाज़ किसी फाइव-स्टार होटल के कमरे में लगे एफएम से कम नहीं आती है...........अब इस में भी किसी हकीम जी की विज्ञापनबाजी घुसेड़ कर क्या कर लोगे.......क्यों हम उन बंदों की पहले से ही बेहद कंप्लीकेट लाइफ को और भी ....... !!

मुझे इस कार्यक्रम के format से ऐसा ही लगा कि यह कोई स्पोंसर्ड कार्यक्रम है...नहीं तो अभी तक यह प्राइवेट डाक्टरों के नाम,पते, फोन नंबर कहां इन प्रोग्रामों में सुनते को मिलते थे। लेकिन दोस्तो कुछ भी हो मेरे को तो यह सब अच्छा नहीं लगा।

दोस्तो, चाहे मैं हकीमी ज्ञान के बारे में कुछ भी नहीं जानता लेकिन जिस तरह की बातें उस कार्यक्रम में हो रहीं थीं, वह आप को बताना चाहूंगा.......शरीर की कमज़ोरी, जिगर की गर्मी, पिचके गाल, धंसी गाले...बाकी तो आप समझ ही गये होंगे। बार-बार यही कहा जा रहा था कि आपको चैक अप करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। वैसे तो आप भी सोचते होंगे कि इस में क्या नई बात है, सभी डाक्टर रेडियो-टीवी पर ऐसा ही तो कहते हैं.....अब बिना देखे थोड़ा ही वो दवा-दारू शुरू कर देते हैं। बात आप की ठीक है, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे इस प्रोग्राम में यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.....शायद sponsorship वाले छोंक की भनक मात्र से सारी दाल का ज़ायका ही बदल जाता है।

स्पांसरशिप वाली बात से एक बात याद गई कि मेरा बेटा मुझे कुछ दिनों से कह रहा है कि पापा, अपनी हैल्थ वाली बलोग्स पर कुछ विज्ञापन डाल लो, लोग तो इससे बहुत कमा रहे हैं। मुझे उस को समझाना ही पड़ा कि क्यों कोई दवाईयों के विज्ञापन मेरी ब्लोग पर देने की हिमाकत करेगा, क्योंकि मैंने जब किसी भी प्रोडक्ट को रिकमैंड ही नहीं करना अपनी बलोग पर , तो क्यों कोई देगा विज्ञापन। दूसरी बात यह भी है , मैंने उसे समझाया, कि अगर एक बार बिल्ली के मुंह पर खून लग गया ....एक बार मुझे इन विज्ञापनों से होने वाली पांच सौ-एक हज़ार रूपल्ली के नशे की लत गई , तो फिर मैं जो लिखूंगा,उन विज्ञापनों में दी गई वस्तुओं एवं सेवाओं को बेचने के लिए ही लिखूंगा..........मेरे लिए तो भई वह दोयम दर्जे का ही लेखन होगा.....जब मैं अपने मन की बात ही किसी तक पहुंचा पाऊं.......वह तो फिर बात हो गई स्पोंसर्ड लेखन की ....लेखन और वह भी स्पोंसर्ड ...बात हज़म नहीं हो रही....आप को भी नहीं हो रही ?---आप की यह बदहज़मी लेकिन आप के बारे में बहुत कुछ ब्यां कर रही है। इस के लिए कुछ लेने की ज़रूरत नहीं ....बस, हमेशा ऐसे ही बने रहिए।